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Wednesday, October 31, 2012

सफलता का गर्व


स्मृति का सहारा ले,
देख रही हूँ मैं,
जिंदगी के उस हिस्से को
जिसमें ताज़ी सांसों के एवज़ में
सुबह-सुबह लोग
अपने घोंसलों से निकला करते थे
और मैं-
किया करती थी साफ
शहर-भर का चेहरा
इतना खौफ, इतना भय भर गया था
कि सुहाग रात के दिन
घंटों खुद को सूंघती रही
मेरी पोती का आइसक्रीम के लिए झूठमूठ रोना
मुझे ले आता है आज में,
मैं लेती हूँ अपने पति का,
झुर्रियों भरा हाथ,
खुश्क मजदूर के हाथ,
हमेशा स्नेह से नम रहे,
लुढकते आंसुओं को पोंछते हुए,
दूर देखती हूँ अपनी बेटी का मुस्कराता चेहरा
उसके कंधे पर स्टेथेस्कोप है,
और मेरी छाती में कूट-कूट कर समाहित है,
एक अधेड़ दंपत्ति की सफलता का गर्व.

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