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Tuesday, October 30, 2012

बार-बार फिर से


तुम मुझसे सहमत नहीं होगे,
और मैं तुम्हारी मुखालिफत चाहता भी नहीं,
जिस देश में,
इंसान को,
आवारा कुत्तों की तरह बरता जाये,
जहां सिर्फ डरपोकों का बसर हो,
जहां किसी दैवीय हस्तक्षेप के इंतज़ार में...
हम दिन, दशक और सदियाँ गुज़ार देते हैं.
वहाँ हर बार मेरे देश को जलना पड़ता है
उसकी राख की सुलगन बाक़ी ही होती है कि...
कोई और अपनी प्रयोगशाला समझ...
एक और बम गिरा जाता है.
मानों एक कोठा हो जहां...
शादी से पहले हर कोई अपने हाँथ आजमा लेता है.
कि हम फिर से सुर्खियाँ पढ़ते हैं
मानों कोई "कॉमिक" पढ़ रहे हों
कि हम फिर से भौंचक रह जाते हैं
कि ऐसा फिर से हो गया
कि हम फिर से अमन-चैन के गीत गाते हैं
जिसमें सुलगन और आह के नामों-निशाँ नहीं...
कि हम फिर से जंतर-मंतर पर धरना देते हैं
मसलन कोई नौकरी कर रहे हों
कि हम फिर कुछ मोमबत्तियां जलाते हैं
और गला देते हैं अपने दिलों का गुस्सा
कि हमें फिर से लगता है की इंटरनेटी-क्रान्ति
सब ठीक-ठाक कर देगा
और दोहराते रहते हैं इस "फिर" के सिलसिले को.
जहां के पत्रकार अपने देश पर हुए बलात्कार
को मुनाफे के एवज़ में
बार-बार दिखाते हैं
भूखे कुत्ते की तरह हम अपने स्वामी (पश्चिमी देशों) का मूंह देखते हैं
कि वह हमें खाना दे और पीठ सहलाये
और हम शांतिपूर्ण होने की झूठी आत्म-तुष्टि
को न्यायोचित ठहरा सकें
नैतिकता, जो सदियों से हमें परोसी गयी है
का सहारा ले अपनी बुझदिली को सहनशक्ति की संज्ञा दें
हमारे गृह-मंत्री हर एक हादसे के बाद
लोगों की तारीफ़ करते नहीं अघाते
कि लोग "फिर से काम पर जाने लगे हैं"
कि पुलिस ने "फिर से बहादुरी से काम लिया"
और एक-दस लाख मुआवज़ा दे, बंद कर दी जाती है
रिपोर्ट और उनसे जुडी जिंदगियों की फाईल
कि यह भद्दा मज़ाक है
मेरे-हमारे देश के साथ
कि सिखाया जाता है हमें बार-बार
संस्कारों-नैतिकताओं के नाम पर
चुप-रहना
और
किसी जादुई हस्तक्षेप का इंतज़ार करना
कि दर्जन -धमाकों के बाद भी
"हमें हिम्मत नहीं खोनी चाहिए"..."शांति फिर कायम होगी"
तो यह जान लो
इस देश में तुम मरोगे
किसी रोग या बीमारी से नहीं
वरन किसी बम के फटने से
और तुम-हम जैसा ही कोई और
किसी क्रिकेट खिलाडी या फिल्मी सितारे
के नजरिये को सर-आँखों पर रखेगा
सवाल यह नहीं कि इसके आगे क्या होगा
अहम् यह होगा कि
कैसे कुचल-मसल दिया जाये उनको
जो कुलबुलाते हैं कभी-कभी बदहवासी में,
जिनके कहने-सुनने-करने से
तुम्हारी कान पर जूँ रेंग जाते हैं.
तुम्हारे आराम में खलल पड़ता है
बार-बार फिर से
 

 

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