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Monday, October 29, 2012

'तुम छूना मुझे'

तुम छूना मुझे
जब जिंदगी,
खेतों में उगी जंगली घास सी हो जाए...
तुम छूना मुझे.....
जब ज़िन्दगी,
बगीचे के गुलाबों के होश उडाती मौत की बदबू हो जाए...
तुम छूना मुझे.....
जब ज़िंदगी,
किसी कटे हुए पेड़ के सूखते पानी की तरह हो जाए...
तुम छूना मुझे.....
जब ज़िन्दगी,
गटर के किनारे लगे गपचुप के ठेले की अगरबत्ती की तरह हो जाए...
तुम छूना मुझे.....
जब ज़िन्दगी,
रबर की तरह तन जाए, हाथ से छूट जाए...
तुम छूना मुझे.....

हमेशा याद रखना
कि छूना है तुमको...
और स्पर्श मात्र से हो जाऊँगा मैं...
पुनः कर्मरत...
जिंदगी नाम की पहेली...
सुलझाने में.

 

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