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Friday, October 26, 2012

प्रेम, जिसे कई तरह से समझने की कोशिश की गई, फिर भी कमबख्त चारो खाने चित्त कर दे...


कविता : प्रेम
 
प्रेम
एक बिल्ली है,
जो बारिश के बाद,
अपने ही घावों को चाटती है...
या एक राजकुमारी,
जो नमक के एक महल में रहती है,
और रो नहीं सकती...
या एक खिला फूल,
जिसे महज़ छू लेने भर से,
गमले में सजाया नहीं जा सकता....
प्यार हिरन की वे आँखें भी हैं,
जो सदा एक अबोध सवाल लिए,
संवेदना से लबलब टपकती रहती हैं...
या एक छोटा सा भालू,
जो शहद के खत्म हो जाने के बाद भी,
छत्ते से खेलना नहीं छोड़ता...
 
या लकड़ी का एक पहिया
जिसका काश्तकार
अपनी सारी जिंदगी उसकी
चिकनी गोलाई पर न्योछावर
कर देता है....
 

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