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Wednesday, October 31, 2012

पराया घर?


चार रातों से,
रात-रात भर रोती रही.
किस ने उफ्फ तक न की,
न ही टोही हाल-चाल .
भरा-पूरा परिवार...
और मैं रोती रही,
दर्द घर का घर कर गया.
क्या यही हैं, जिन्होंने गुल को सींचा ?
क्या यही हैं, जिन्होंने बाहों में भींचा ?
कल तक मैं सबकुछ,
कल्पना, मेधा, बेदी सब,
आज उनकी मायूसी का सबब.
कुल जमा चार दिन हुए मुझे ससुराल छोड़े हुए.

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