अब हम वक़्त गुज़ारते हैं..
हाथों-होठों को सहलाते-सहलाते,बेमतलब की बातों में हँसते-हँसाते,
हम गुज़ारते हैं वक़्त...
Courtsey : Google Images |
जिस्म का एक होना ज़रूरी नहीं…
ज़रूरी होता है केवल एक पहलू….
महज़ साँसों से साँसों का छुअन…
और वक़्त के पांवों में ज़ंजीर बाँधे नहीं बँधती...
धौंकनी की तरह वक़्त पिघलता-फिसलता चलता है.
बेतरह दो आवारा दिल...
इसी,
रूहानी इश्क,
में
वक़्त को क़ैद करने की...झूठी तसल्ली पाते हैं.
दिन से शाम, शाम से रात.
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