Search This Blog

Friday, October 26, 2012

(एक पुत्र का पिता को लिखा पत्र), उड़ान फ़िल्म की एक कविता से प्रेरित


अंधेरों में रोशनी,
ये नज़र खोज पाती,
जो तुम जान लेते,
मैं क्या सोचता हूँ...
जिंदगी कि विरानियाँ,
यूँ ना सर उठातीं,
जो तुम जान लेते,
मैं क्या सोचता हूँ....
अहम खुश-फहम का,
न खुद पर पर्दा चढ़ाती,
जो तुम जान लेते,
मैं क्या सोचता हूँ ...
हकिक़त की क्यारियों में,
सपनों के बीज बो पाते,
जो तुम जान लेते,
मैं क्या सोचता हूँ....
दूर रोशनी के जो छिटके हैं टुकड़े,
जिंदगी की गर्दिशों को मिटाते,
मयस्सर हो ही जाती खुशियाँ हमें भी,
जो तुम जान लेते
मैं क्या सोचता हूँ.....

 


 



No comments:

Post a Comment