आज फिर सुबह हुई,
सूरज फिर उगा सुस्ती के साथ,कोहरे छानते रहे धूप को,
आज फिर ठंडक घुल गई है फिजाओं में,
पत्तों पर ओस की बूंदें,
गिरने के लिए ठहरी हुयी हैं.
आज फिर नदी बुलाती मुझको,
उसके बगल बैठा..
बुनता-बीनता रहा रहूं ज़िन्दगी,
पेड़ पुकारते, छाँव का देते लालच,
आज ही.
सबकुछ कल की तरह ही है,
Coutsey : Google Images |
सुनता हूँ प्रकृति का हर एक नाद.
आज जिसके हाथों की नमी,
काफूर हो रही जेहन से .
पाता हूँ उसको,
धरती के हर सुन्दर सृजन में.
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