बस में, मेट्रो में, ऑटो
में
दीख
जाएगा, कोई न कोई, हीनता का मारा,
अपनी कमियों को छुपाने में
कारगुजार.
जिसके पास है,
वह उससे महंगे को देखता.
न ही मेक-अप घटा सकते है
झुर्रियों से झांकते तनाव
घास न उधर हरी है, न इधर,
चमक के पीछे,
अथक संघर्ष, घिनौने शोषण की कहानिया हैं
हीनता, एक सनकी खुशी का नाम है
मेरा-तुम्हारा हीन होना एक जाल है
जाल, जिससे निकलना गंवारा नहीं.
बचने का चिराग हो, तब भी, ख्वाहिश नहीं.
इसे तो कुतर सकता है एक रद्दी वाला
चायवाला या रिक्शेवाला
हीराबाई या हिरामन,
कोई तन्नी गुरु या अस्सी का कोई टंच फटीचर,
या ऐसे बहुत, जिन्होंने,
खुश रहने का नुस्खा खुद तैयार किया है.
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