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Thursday, November 1, 2012

नुस्खा तैयार किया है





 बस में, मेट्रो में, ऑटो में
दीख जाएगा, कोई न कोई,
हीनता का मारा,
अपनी कमियों को छुपाने में
 कारगुजार.

 महंगे से महंगे कपडे, अत्तर, जूते
और क्या-क्या...

  जिसके पास नहीं,
वह मुंह बाये खड़ा,
जिसके पास है,
वह उससे महंगे को देखता.

 होंठो पर जमी चमक,
दिली मुस्कान की गारंटी नहीं,
न ही मेक-अप घटा सकते है
झुर्रियों से झांकते तनाव
 
घास न उधर हरी है, न इधर,
चमक के पीछे,
अथक संघर्ष, घिनौने शोषण की कहानिया हैं
 
 पर, मैं-तुम नशा किये हुए हैं...
 हीनता, एक सनकी खुशी का नाम है
 मेरा-तुम्हारा हीन होना एक जाल है
जाल, जिससे निकलना गंवारा नहीं.
 बचने का चिराग हो, तब भी, ख्वाहिश नहीं.
 
मैं-तुम इस जाल को कुतर नहीं सकते,
इसे तो कुतर सकता है एक रद्दी वाला
चायवाला या रिक्शेवाला
हीराबाई या हिरामन,
कोई तन्नी गुरु या अस्सी का कोई टंच फटीचर,
या ऐसे बहुत, जिन्होंने,
खुश रहने का नुस्खा खुद तैयार किया है.

 

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