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Wednesday, April 3, 2013

कविता : उन्हें पता है....



उन्हें पता है
किसी आम सभा में खड़े होकर,
आम भाषा में वे आज भी चिल्ला सकते हैं,
और आम जन अपना पैसा-खाना ले अपना रास्ता नाप सकती है.

उन्हें पता है,
तर्कों के बाढ़ में अब वे उस पेड़ के तने को बमुश्किल पकड़े हुए हैं,
जो कभी भी उखड़ सकता है, जिसे लील सकता है उनका ही किया हुआ कोई वादा.
...
उन्हें पता है-
उनके तर्क अब अलबम में खराब हो रहे तस्वीर हैं,
और वह अतीत जो कभी संगमरमर हुआ करता था,
आज चमगादड़ों के गढ़ हैं जहाँ, 
अंतर्जातीय युगल अपनी प्रेम-पिपासा को शांत करते हैं.

उन्हें पता है-
उनके भाषणों से उपजी राख उनके ही बालों की जड़ों में सनी है
उनके शब्दों का ज़हर धंसा है कांच बनकर बच्चों की आँखों में.

उन्हें पता है,
तख़्त का बहुत बड़ा हिस्सा अब उनका है
जिनकी भूख...दो-तीन रूपये पर राशन मुहैया करने पर भी
महज़ रिपोर्टों में ही मिट पाती है
जिन्हें धर्म और जाति से कोई शिकायत नहीं,
शिकायत तो वे करते हैं जिन्हें विकल्प नाम की आजीवन लाटरी लगती है.

उन्हें पता है,
कभी भी बदल सकती है तस्वीर
बोरियत की उबकाई खतरनाक हो सकती है....
संसद और संसद के बाहर भारत इण्डिया, इण्डिया भारत करने वाले
स्त्रियों के तालुकदार, मोबाइल पोर्न के रखवाले,
अपने दोगले चुनाव की दुहाई दे, जनता की कसमें खा,
अपनी तोंद सहलाते हुए, किसी भी कोने को गिला कर सकते हैं,
ममता मुलायम हो सकती है और मुलायम मनमोहन.

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