हरखू “कुछ” है,
शुक्र है “कुछ नहीं” नहीं
दरअसल यह “कुछ नहीं” नहीं,
होना अक्सर,,
बजट में अचानक उसका हो जाना होता है.
बंसल साहब,
भी कुछ हैं,
... कागजों में सेंत रखते हैं अपना भविष्य
ईंटा-बालू के लिए पाई-पाई जोड़ते हैं वर्तमान,
और कुछ की ख्वाहिश में,
घटा रहे हैं चेहरे का नमक
ईंटा-बालू के लिए पाई-पाई जोड़ते हैं वर्तमान,
और कुछ की ख्वाहिश में,
घटा रहे हैं चेहरे का नमक
.


और ऐंठी है, जो किये बहुत किये
सुना है,
करोड़ पर एक्के बार लगेगा टैक्स,
और इस “कुछ” के चक्कर में
सरकार अपना “सबकुछ” बचाए खातिर
“कुछ-कुछ” से शुरू कर, “सबकुछ” करने को तैयार रहती है.
इस तरह “कुछ” और “कुछ” का खेला चलते रहता है.
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Fine..Badhiyaa.. Anuj Bhaiyaa..!!
ReplyDeleteभईया मत बोलो यार, गाली लगता है. सब ठीक-ठाक मेरे भाई?
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