जिनके सर पर छत हो,
उनके लिए धरती घर होती है,
जिनके हाथ में रोटी हो,
उनके लिए धरती शहद का छत्ता होती है,
जिनके देह पर शॉल हो,
उनके लिए धरती गर्म होती है,
जिनके बगल में माशूक हो,
उनके लिए धरती रूमानी होती है,
जिनके हाथ में प्याला हो,
उनके लिए धरती सपना होती है,
धरती के लाखों रंग उनके भी होते हैं,
जिनके सर शम्बूक के हैं,
हाथ एकलव्य के और दिल कबीर का,
जो बिरसा हैं, जाबली सत्यकाम हैं,
जो मनुष्य से हैं, मनुष्य नहीं,
जिनके ज़मीं का हिस्सा किसी का बकाया है,
जिनने अपने आकाश, चाँद सूरज खातिर बहुत चुकाया है,
जिनके बगल में कोई नहीं,
केवल ये हैं, इनके मवेशी, इनका घर.
जिनकी कोई मांग नहीं, केवल जबरन माँगा है,
जिन्होंने अपना बचपन धरती को जन्नत मानने में गुज़ारा है
और अपनी जवानी आकाश तक चीखें,
और धरती के गर्भ में अपनी आहें पहुंचाने में गुजारी है,
जो आज भी दो बांह धरती के मोह में
सदियों
से दधिची की हड्डिया ढूँढ रहे थे. ढूँढ रहे हैं.
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