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Monday, March 11, 2013

कविता : बसंत के बाद बसंत की याद

साभार : गूगल चित्र
एक तडके सवेरे,
कोयल बन कुहुकने लगी बसंत...
पेड़ की उस शाख पर जिसे नहीं कटने देने पर,
बच्चों ने सनकी बुढ़ा करार दिया.
बसंत ने निपट-निठुराई की,
कान सुलझाते रहे कुहुकते बसंत के कोड,
बसंत कुहुकती रही...
जाओ अब तुमसे यारी अच्छी नहीं...
मैंने कोयल से नज़रे मिलायीं, नज़रे झुका लीं,
मैंने सुना,
भाग चिरैया भाग,
भाग चिरैया भाग.
सौतन लोग पीर दूजे की न जाने है.

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