तुमने उसे
नहीं मारा,
न मैंने
मारा है, न जिस पर उठा है बबाल,
उस सरकार ने दिया है इसे अंजाम,
वोट उसका कुसूरवार है.
वोट जिसको फक्र है अपने निरपेक्ष होने का,
वोट जिसको अब भी है गुमान,
कि वह सर्वेसर्वा है,
कि जिसकी अंगुली की स्याही से लिखी जाती है तकदीरें,
उसकी तकदीर में नहीं होती है असल स्याही,
ताकि वह अलीफ बे ते से के मारे
कुछ गर्म जेबों की बदल सके तकदीर.
मरा तो यह देश है,
जिसके पिट्ठुओं ने,
वोट की एवज में कर दिया है उसका क़त्ल.
मरा तो वह है,
जिसकी आवाज़ जनपथ पार नहीं कर पाती,
जिसकी आवाज़ को नहीं मिल पाती गिलानी को मिली हुयी आवाज़,
जिसकी आवाज़ को “जख्मी सामूहिक अंतरात्मा” की आवाज़ की साज़िश के तहत....
गुमनामी, अफरा-तफरी में नाबूद कर दिया जाता है.
जिसकी लाचारी और असहायता का फायदा उठा
वोटर लिस्ट और जीवन से हटा दिया गया उसका नाम
भयानक है ऐसा सोचना की हो रहा है यह,
वोटों की साजिश के तहत,
हिंसा परमो धर्मं: की सीख दे,
आदमखोरों में किया जा रहा है तब्दील,
बेशर्म सरकारें सफाई-गवाही देने में व्यस्त है,
वोट के अखाड़े में सर्वोच्च न्यायालय निरस्त-पस्त है.
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