चावल,
बोरे में बचा था कुछ चावल,
चावल- जिससे मिटाते हैं भूख,
चावल बस एक समय का.
इंतज़ार,
रात
का इंतज़ार,
स्याह होने का इंतज़ार,
इंतज़ार-तारों का नहीं, सिगरेट के टुकड़ों का.
उम्र के जाने के साथ जाती नौकरियाँ,
उम्र की कैद में सिमटी नौकरियाँ.
उम्मीदें-जिनपर खड़ा है आदमी,
उम्मीदें-जिनपर लगे हैं संशय के जाले.
सवाल-जिसके लच्छे छोड़ चटखारे लेते आदमी,
सवाल- पढ़ाई खूब, नौकरी छोटी-मोटी?.
पूछता- कैसा लगता है
अर्जियों के जवाब में बंद, सपनों का इंतज़ार?
पूछता- कैसे कर सकता है
सपनों से थका आदमी किसी भी गुलामी का इंतज़ार?
पूछता- मुझ युवा पर दंभ भर्ती सरकार
कैसे कर सकती है योग्यताओं को तार-तार?
कैसे दे सकती है क्रूर दिलासों का व्यापार?
कि कोई तो जाए, गुहार दे, चीखे-चिल्लाए,
कि हमारे वोट पर ऐंठती सरकार!
टूट-फूट गए हैं हम, अब और न होता इंतज़ार.
बोरे में बचा था कुछ चावल,
चावल- जिससे मिटाते हैं भूख,
चावल बस एक समय का.
स्याह होने का इंतज़ार,
इंतज़ार-तारों का नहीं, सिगरेट के टुकड़ों का.
उम्र,
मोमबती सी पिघलती उम्र, उम्र के जाने के साथ जाती नौकरियाँ,
उम्र की कैद में सिमटी नौकरियाँ.
उम्मीदें,
कूड़े
के हवाले हैं उम्मीदें उम्मीदें-जिनपर खड़ा है आदमी,
उम्मीदें-जिनपर लगे हैं संशय के जाले.
सवाल,
सब
पूछते सवाल दर सवाल,
सवाल-जिसके लच्छे छोड़ चटखारे लेते आदमी,
सवाल- पढ़ाई खूब, नौकरी छोटी-मोटी?.
पूछता,
मुझसे
कोई तो पूछता-पूछता- कैसा लगता है
अर्जियों के जवाब में बंद, सपनों का इंतज़ार?
पूछता- कैसे कर सकता है
सपनों से थका आदमी किसी भी गुलामी का इंतज़ार?
पूछता- मुझ युवा पर दंभ भर्ती सरकार
कैसे कर सकती है योग्यताओं को तार-तार?
कैसे दे सकती है क्रूर दिलासों का व्यापार?
कि कोई तो जाए, गुहार दे, चीखे-चिल्लाए,
कि हमारे वोट पर ऐंठती सरकार!
टूट-फूट गए हैं हम, अब और न होता इंतज़ार.
No comments:
Post a Comment