Search This Blog

Friday, August 16, 2013

मैं तुम हूँ.... तुम मैं हो !



मैं किसी कट्टर वाद का फरमान नहीं,
न कोई संवैधानिक चेतावनी,
न किसी संक्रामक गुप्त रोग
धूम्रपान, गुटके का इश्तिहार,
जिन्हें देख मन और छटपटा जाए,
मन भर, भर जाए भय हिया में,  

 अंखुआ भर हूँ मैं,
टिफिन की चार रोटी, एक अंचार और एक हरी सब्जी,
मेरी बजूद की आप बलाएँ लेते हो,
मुझसे ताल्लुक रखती है औसतन सारी दुनिया,
मैं अपने चौके की गणेश की परिक्रमा हूँ,
बकायदा मानुष हूँ, ठोंगे भर जुगाड़ हूँ,
मुझमें इयारी का लूर है, जो किसी का मुदई कतई नहीं,
मैं अनेरिया हूँ, जो अनेरुआ उग ही आता है,
इतना थुथुराया हूँ की थेथर हूँ,
मैं एक शातिर बोका हूँ,         
जिसे हलख से ज़बान गायब करने का प्राकृतिक हूनर है,
मैं तुम हूँ,
तुम मैं हो.  

No comments:

Post a Comment