एक आदमीनुमा आदमी,
एक वलय को रोज़ करता है पूरा.
तड़के-सवेरे के काज निपट,
एक-दस मिनट के लिए,
चाय की चुस्कियों और अखबार की हस्तियों में रहता है मशगुल,
एक-दस मिनट बाद,
एक-दस साल पुरानी घड़ी पर फेरता है नज़र,
घुटने पकड़ उठता है,
बच्चों के न उठने पर बिगड़ता है,
और बीबी से पूछता है, लिस्ट,
लिस्ट के इर्द-गिर्द उसने रच लिया है अपने जीवन का भूगोल.
लिस्ट ले, पड़ोसियों को दुआ-सलाम करते निकल पड़ता है, मंडी,
मंडी में ढूँढता है सबसे सस्ती सब्जियाँ,
वापस लौटते बच्चों के लिए खरीदे लाता है,
दस रूपये में दस लिखो-फेंको पेन.
कुल जमा दस मिनट,
अपने इष्ट ग्रुप के सामने घुमाता है बत्ती,
फिर अपने सबसे फेवरेट गुरू के फोटो के चरण छू,
लेता है देवता घर से एग्जिट,
कपड़े बदलते हुए, नाखुनो को रगड़ता है लगातार,
फिर माँ के चरण छू, बलाएँ ले,
बीबी से हिदायतें, घर की चिंताएँ ले,
निकलता है ऑफिस,
रस्ते में, सारे मंदिरों पर, बस में से ही झुकाता है शीष,
एक-तीन बार चूमता है हाथ,
फिर हाथ से चूमता है माथा.
ऑफिस में नियत ढंग से करता है चिक्कन-चिक्कन बात,
नियत समय पर खाता है टिफिन,
टिफिन दौरान, आदतन, उंडेलता है गुबार,
बड़ा होता, हाथ से छूट रहा है लड़का,
बड़ी होती, नफीस-ज़हीन हो रही है लड़की,
जेब, लिंग निर्धारण में कन्फ्यूजिया गई है,
किसे आगे बढ़ाया(पढ़ाया) जाए, किसे नहीं.
फिलहाल, लड़की को डॉक्टरी न करने देने के लिए सोच रहा है सौ बहाने.
वापसी में पूरी करता है एक और लिस्ट,
आदतन, पाई-पाई का हिसाब रखनेवाला आदमीनुमा आदमी,
पकड़ लेता है ग्यारह नंबर,
उबाऊ नज़र से, डीकोडिफाई करते चलता है,
अपने जैसे यंत्रवत आते-जाते लोगों के उबाऊ-अपढ़ चेहरे,
बीच में लकदक करती मॉलों से होती हैं भेंट,
ठिठक, अपलक....
ख़ुशी और मुस्कानों के समझ लेना चाहता है गणित,
एक कुम्लाही कसक कि वह भी हो सके शरीक, फिर कुम्लहा जाती है,
अपने विजडम से मानता है, कि गलत है पोसना कोई भी सपना,
कि ठोंगे भर तनख्वाह में,
खरीद नहीं सकता वह, खुशी का थोड़ा भी भूजा.
तदन्तर शरीक-ए-हयात के आइडिया को करता है बर्खास्त,
अपने सधे क़दमों से, बचते-बचाते, पहुँचता है घर,
जूते उतार, धोता है हाथ-पैर,
वापस सिंगल पिस आने के लिए, बत्ती दिखा, अपने ईष्ट का होता है शुक्रगुजार,
मेज़ पर करती है चाय इंतज़ार,
एक-दस मिनट, टीवी पर बांचता है अखबार,
बच्चों से करता है थोड़ा बहुत बात-व्यवहार,
और अंत में,
बीबी को सारी रपट दे, शायद नींद में निकालता है सारे गुबार.
इस तरह पूरा करता है एक घेरा,
एक आदमीनुमा आदमी.
______________________________ _____अनुज_______________
एक वलय को रोज़ करता है पूरा.
तड़के-सवेरे के काज निपट,
एक-दस मिनट के लिए,
चाय की चुस्कियों और अखबार की हस्तियों में रहता है मशगुल,
एक-दस मिनट बाद,
एक-दस साल पुरानी घड़ी पर फेरता है नज़र,
घुटने पकड़ उठता है,
बच्चों के न उठने पर बिगड़ता है,
और बीबी से पूछता है, लिस्ट,
लिस्ट के इर्द-गिर्द उसने रच लिया है अपने जीवन का भूगोल.
लिस्ट ले, पड़ोसियों को दुआ-सलाम करते निकल पड़ता है, मंडी,
मंडी में ढूँढता है सबसे सस्ती सब्जियाँ,
वापस लौटते बच्चों के लिए खरीदे लाता है,
दस रूपये में दस लिखो-फेंको पेन.
कुल जमा दस मिनट,
अपने इष्ट ग्रुप के सामने घुमाता है बत्ती,
फिर अपने सबसे फेवरेट गुरू के फोटो के चरण छू,
लेता है देवता घर से एग्जिट,
कपड़े बदलते हुए, नाखुनो को रगड़ता है लगातार,
फिर माँ के चरण छू, बलाएँ ले,
बीबी से हिदायतें, घर की चिंताएँ ले,
निकलता है ऑफिस,
रस्ते में, सारे मंदिरों पर, बस में से ही झुकाता है शीष,
एक-तीन बार चूमता है हाथ,
फिर हाथ से चूमता है माथा.
ऑफिस में नियत ढंग से करता है चिक्कन-चिक्कन बात,
नियत समय पर खाता है टिफिन,
टिफिन दौरान, आदतन, उंडेलता है गुबार,
बड़ा होता, हाथ से छूट रहा है लड़का,
बड़ी होती, नफीस-ज़हीन हो रही है लड़की,
जेब, लिंग निर्धारण में कन्फ्यूजिया गई है,
किसे आगे बढ़ाया(पढ़ाया) जाए, किसे नहीं.
फिलहाल, लड़की को डॉक्टरी न करने देने के लिए सोच रहा है सौ बहाने.
वापसी में पूरी करता है एक और लिस्ट,
आदतन, पाई-पाई का हिसाब रखनेवाला आदमीनुमा आदमी,
पकड़ लेता है ग्यारह नंबर,
उबाऊ नज़र से, डीकोडिफाई करते चलता है,
अपने जैसे यंत्रवत आते-जाते लोगों के उबाऊ-अपढ़ चेहरे,
बीच में लकदक करती मॉलों से होती हैं भेंट,
ठिठक, अपलक....
ख़ुशी और मुस्कानों के समझ लेना चाहता है गणित,
एक कुम्लाही कसक कि वह भी हो सके शरीक, फिर कुम्लहा जाती है,
अपने विजडम से मानता है, कि गलत है पोसना कोई भी सपना,
कि ठोंगे भर तनख्वाह में,
खरीद नहीं सकता वह, खुशी का थोड़ा भी भूजा.
तदन्तर शरीक-ए-हयात के आइडिया को करता है बर्खास्त,
अपने सधे क़दमों से, बचते-बचाते, पहुँचता है घर,
जूते उतार, धोता है हाथ-पैर,
वापस सिंगल पिस आने के लिए, बत्ती दिखा, अपने ईष्ट का होता है शुक्रगुजार,
मेज़ पर करती है चाय इंतज़ार,
एक-दस मिनट, टीवी पर बांचता है अखबार,
बच्चों से करता है थोड़ा बहुत बात-व्यवहार,
और अंत में,
बीबी को सारी रपट दे, शायद नींद में निकालता है सारे गुबार.
इस तरह पूरा करता है एक घेरा,
एक आदमीनुमा आदमी.
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