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Wednesday, July 10, 2013

कविता : हमारे सपने तुम्हारे स्वप्न नहीं हैं



मानु* का खोल पहनाकर, अभयारण्य* के नाम सौंपकर,
हम रहेंगे चैन से, सपना मीठा दिखाते रहे,
हमने आँखे मूँद ली, देख कर रौशन मीनारें,
और तुम्हारे फेंके बोतलों में, दिवाली यूँ मनाते रहे,
याद रखो ऐ सुखनवर, धरती को पाला है हमने,
तुम हमारी धरती पर, अपना आराम, उगाते रहे,
हमने न पूछा था तुमसे, क्या है हमारा पता,
तुम पते को बंजर बता, अक्सर हमें धकियाते रहे,
बरगद सा दिल नहीं है, न बड़ा पैमाना हमारा,
कि फौजियों की बूट को, सर-आँखों पर सजाते रहे
धूल में खो जायेंगे हम, खाक-राख हो जायेंगे,
तुम्हें भी गर्त कर छोड़ेंगे, गर यूँ अपना कह सताते रहे.
झंझावात है हम, शंख में बैठा नीरव उद्घोष हैं,
तुम नियामक न बनो, हम अपने नियम बनाते रहे.
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मानू – असमिया में इंसान के लिए
अभयारण्य – अंडमान में एक अभयारण्य है, नाम है जरावा आदिवासी अभयारण्य. इस अभयारण्य में जरावा आदिवासी रहते हैं. पर्यटक अक्सर उन्हें लुप्तप्रायः प्राणियों की तरह देखने जाते हैं.

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