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Monday, March 11, 2013

कविता : बसंत के बाद बसंत की याद

साभार : गूगल चित्र
एक तडके सवेरे,
कोयल बन कुहुकने लगी बसंत...
पेड़ की उस शाख पर जिसे नहीं कटने देने पर,
बच्चों ने सनकी बुढ़ा करार दिया.
बसंत ने निपट-निठुराई की,
कान सुलझाते रहे कुहुकते बसंत के कोड,
बसंत कुहुकती रही...
जाओ अब तुमसे यारी अच्छी नहीं...
मैंने कोयल से नज़रे मिलायीं, नज़रे झुका लीं,
मैंने सुना,
भाग चिरैया भाग,
भाग चिरैया भाग.
सौतन लोग पीर दूजे की न जाने है.

Friday, March 8, 2013

कविता : मृत नवजात


उसने अपनी माँ के सर पर आँचल देखा,
देखा बालों के बीच ढेर सारा सिंदूर,
अपनी अधखुली अधमुंदी आँखों से,
उसने एक सुन्दर सहमा चेहरा देखा,
चेहरे पर घूरती आँखों का पहरा देखा,
अपने होने से पहले ही, 
उसने उम्र की उम्र से पहले हरकत देखी,
होंठों के पपड़ी पर खामोशी का तांडव देखा,
उसने अपनी माँ की आँखों में बहुत कुछ देखा,
उसने जो देखा,
देख बस, नई जुड़ती साँसों की आँखें मूंद दी.
डॉ. ने उसे मृत नवजात करार दिया,
....उसने माँ की आँखों में अपना कल देखा.